शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला एवं प्रदर्शनी का शुभारंभ
भारतीय ज्ञान परंपरा कोई तर्क नहीं एक भाव है : आचार्य देवेन्द्र
भारतीय ज्ञान परंपराज् पीढ़ीयो से हस्तांतरित होता रहा है : देवेन्द्र
राजनांदगांव । शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर सुचित्रा गुप्ता के निर्देशन में भारतीय ज्ञान परंपरा (आई. के. एस.) समिति के नेतृत्व में तीन दिवसीय भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर कार्यशाला एवं प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया। कार्यशाला एवं प्रदर्शनी का उद्देश्य भारतीय परंपरा, दर्शन और ज्ञान की इस अविरल धारा को नई पीढ़ी तक पहुँचाना और उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ना है। कार्यशाला के प्रथम दिवस रिसोर्स पर्सन के रूप में ग्रामीण सेवा, छत्तीसगढ़ प्रांत के आचार्य देवेन्द्र, प्राचार्य डॉ. सुचित्रा गुप्ता, संयोजक डॉ. त्रिलोक कुमार, सह संयोजक डाॅ. प्रमोद कुमार महीष, आयोजन सचिव डाॅ. डाकेश्वर कुमार वर्मा, लेखा प्रसाद उर्वसा, डाॅ. ललित प्रधान आर्य एवं वंदना मिश्रा उपस्थित थे।
भारतीय ज्ञान परंपरा समिति के संयोजक डॉ. त्रिलोक कुमार ने कार्यशाला एवं प्रदर्शनी की विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा पर कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य भारतीय जीवन दर्शन, परंपरागत ज्ञान, स्वदेशी तकनीक और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को पुनर्जीवित करना है जिससे नई पीढ़ी अपने प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिचित होकर अनुसरण कर सके।
प्राचार्य डॉ. सुचित्रा गुप्ता ने कहा कि ज्ञान की ललक हर क्षेत्र में देखने को मिलता है । विज्ञान हो या मीडिया यहां ज्ञान की सीमा आपार हैं पूर्व में जब कोई साधन नहीं होते थे तब परंपरागत माध्यमों का ही सहारा लेना पड़ता था । इस आधुनिक जगत में देख रहे हैं यहां हर दिन चुनौतीयों से भरा है हमेशा नये-नये घटनाचक्र देखने को मिलता रहता है। आज ऐसी नई नई वस्तुएं समाज के समक्ष प्रस्तुत है जो कि हमेशा से ही भारतीय ज्ञान परंपरा से ही मिला है। इस कार्यशाला के माध्यम से इन्होंने बताया कि जो अपनी जड़ों को पहचानता है वही सुदृढ़ भविष्य का निर्माण करता है।
कार्यशाला के रिसोर्स पर्सन आचार्य देवेन्द्र ने भारतीय ज्ञान परंपरा धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, भारतीय ज्ञान परंपरा कोई तर्क नहीं एक भाव है, संपूर्ण जीवन के मार्गदर्शक का सिद्धांत बताते हुए कहा कि भारत की ज्ञान परम्परा सदियों से चली आ रही एक समृद्ध और विविध प्रणाली है। यह ज्ञान सिर्फ़ पुस्तकों या सिद्धांतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परम्परा, संस्कार और ऋषि-मुनियों के आचरण के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा है। भारतीय संस्कृति में माटी को भी माँ का दर्जा दिया जाता है, जो प्रकृति और पर्यावरण के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाता है। यह अद्वितीय और सुंदर ज्ञान परम्परा जीवन के दार्शनिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक पहलुओं को समाहित करती है। भारतीय ज्ञान को आधुनिक शिक्षा पद्धति में समावेश करने पर विशेष चर्चा हुई। इस संदर्भ में, 'वैदिक मैथेमेटिक्स' पुस्तक का विशेष रूप से उल्लेख किया गया, जिसे जगद्गुरू स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ ने लिखा था।
भारतीय ज्ञान परंपरा में भारतीयों की सादगी झलकती है परम्परा हमें प्रकृति को पूजना, पुरानी परंपराओं को जिंदा रखना एवं अंधकार को दूर करना सिखाती है। भारतीय संस्कृति से कई बीमारियों को दूर करने का प्रमाण मिला है इस तरह प्रकृति और संस्कृति के सम्मान से ही व्यक्ति का विकास है।
आयोजित इस कार्यशाला को भारतीय ज्ञान परम्परा को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कार्यक्रम का संचालन वंदना मिश्रा और लिकेश्वर सिन्हा ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक एवं भारी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे