दिनांक -21.12.2024
सुशासन दिवस का आयोजन
राज्य शासन के आदेशानुसार, दिनांक 21 दिसंबर 2024 को सुशासन दिवस के अवसर पर एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य सुशासन के महत्व, सिद्धांतों और वर्तमान परिदृश्य पर विस्तृत चर्चा करना था। यह आयोजन सुशासन के मूल्यों को बढ़ावा देने और नागरिकों को इसके प्रति जागरूक करने की दिशा में एक सार्थक प्रयास था। संगोष्ठी में विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य व्यक्तियों, शासकीय अधिकारियों, शिक्षाविदों और जागरूक नागरिकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। संगोष्ठी में तीन प्रतिष्ठित मुख्य वक्ताओं ने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर सुशासन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।
डॉ. बी.एन. जागृत ने अपने उद्बोधन में सुशासन की अवधारणा को विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि सुशासन केवल कानूनों और नियमों का पालन करना ही नहीं है, बल्कि यह पारदर्शिता, जवाबदेही, भागीदारी, विधि का शासन, समानता और समावेशिता जैसे मूल्यों पर आधारित एक व्यापक दृष्टिकोण है। उन्होंने ऐतिहासिक और समकालीन उदाहरणों के माध्यम से सुशासन के महत्व को रेखांकित किया और बताया कि यह किसी भी राज्य के विकास और प्रगति के लिए आवश्यक है। डॉ. जागृत ने नागरिक-केंद्रित शासन, नीतियों के निर्माण में जनभागीदारी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सुशासन की सफलता के लिए नागरिकों और सरकार के बीच एक मजबूत और विश्वासपूर्ण संबंध का होना अत्यंत आवश्यक है।
डॉ. प्रवीण साहू, डॉ. साहू ने अपने वक्तव्य में सुशासन के व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बताया कि कैसे प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोग करके शासन को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाया जा सकता है। उन्होंने ई-गवर्नेंस, डिजिटल इंडिया जैसी प्रभाव का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार ऑनलाइन सेवाओं के माध्यम से नागरिकों को आसानी से सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल रहा है और भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिल रही है। डॉ. साहू ने डेटा-संचालित शासन और नीति निर्माण के महत्व पर भी प्रकाश डाला, जिससे संसाधनों का कुशल आवंटन और लक्षित विकास संभव हो सके। उन्होंने कौशल विकास और क्षमता निर्माण को सुशासन की नींव बताते हुए इस क्षेत्र में निवेश की आवश्यकता पर बल दिया।
 डॉ. नीलम तिवारी ने सुशासन में नैतिक मूल्यों और महिलाओं की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सुशासन की सफलता के लिए शासकीय कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और सेवाभाव जैसे नैतिक मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुशासन के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण से समाज अधिक न्यायसंगत और समावेशी बनता है। डॉ. तिवारी ने लैंगिक समानता, महिला सुरक्षा और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि एक संवेदनशील और जवाबदेह प्रशासन ही सुशासन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। मुख्य वक्ताओं के उद्बोधन के पश्चात, सभागार में उपस्थित श्रोताओं ने भी सुशासन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए और प्रश्न पूछे। वक्ताओं ने सभी प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर दिया, जिससे एक जीवंत और ज्ञानवर्धक चर्चा का माहौल बना।
संगोष्ठी के अंत में, इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि सुशासन एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें सरकार, नागरिक समाज और प्रत्येक नागरिक की सक्रिय भूमिका आवश्यक है। यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि सुशासन के सिद्धांतों को आत्मसात करके और उन्हें व्यावहारिक रूप से लागू करके ही एक विकसित, न्यायपूर्ण और समृद्ध राज्य का निर्माण किया जा सकता है। संगोष्ठी के अंत में, आयोजकों की ओर से मुख्य वक्ताओं, प्रतिभागियों और कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग करने वाले सभी व्यक्तियों के प्रति आभार व्यक्त किया गया। यह आशा व्यक्त की गई कि इस संगोष्ठी में व्यक्त किए गए विचारों और सुझावों से सुशासन की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने में प्रेरणा मिलेगी।