मुक्तिबोध जयंती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी संपन्न

‘‘मानव की अस्मिता और आत्म संघर्ष के कवि थे मुक्तिबोध – डाॅ. टांडेकर’’
दिग्विजय महाविद्यालय में मुक्तिबोध जयंती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी संपन्न
राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में गजानन माधव मुक्तिबोध की 105 वीं जयंती पर प्राचार्य डाॅ. के.एल.टांडेकर के मार्गदर्शन में “मुक्तिबोध का साहित्य: युगबोध और प्रवृत्तियाँ पर हिंदी विभाग द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रथम दिवस मुख्य अतिथि डाॅ. केशरी लाल वर्मा, कुलपति पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि. रायपुर, अध्यक्ष डाॅ. देवेन्द्र चैबे प्राध्यापक भारतीय भाषा केन्द्र,जे.एन.यू.नई,दिल्ली तथा विशिष्ट अतिथि डाॅ. विजय कलमदार प्राध्यापक, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, छिंदवाड़ा थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि माननीय डा. केशरी लाल वर्मा, कुलपति ,पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि मुक्तिबोध की वैचारिक विशिष्टता ने लोगो को नया सोचने के लिए विवश किया ,उनके साहित्य से नयी चिंतन धारा प्रारंभ हुई जो जीवन की नयी अनुभूतियो से निर्मित हुई। उनके साहित्य का केंद्र शोषण मुक्त,समानता युक्त समाज रहा है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. देवेन्द्र चैबे प्राध्यापक, भारतीय भाषा केन्द्र,जे.एन.यू.नई,दिल्ली ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि मुक्तिबोध अपने साहित्य मे समाज की संरचना को भिन्न तरीके से छूने का प्रयास करते रहे है, उनके साहित्य में दो समाजों के बीच संघर्ष की छाप दिखाई देती है। उनके साहित्य पर तत्कालीन वैश्विक एवं राष्ट्रीय परिदृश्य का भी प्रभाव रहा । अपनी रचनाओ में वे पिछड़े समाज के मन को पढ़ कर दर्शन तक ले जाते है। अपने समय के सभी तरह के दार्शनिक, सामाजिक, आर्थिक परिदृश्यो का टकराव उनके साहित्य में दृष्टिगोचर होता है। विशिष्ट अतिथि डा.विजय कलमदार ,प्राध्यापक, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, छिंदवाड़ा ने कहा कि मुक्तिबोध का साहित्य उनके जाने के दशको बाद भी याद किया जाता है यह उनकी प्रासंगिकता को दर्शाता है। महाविद्यालय के प्राचार्य ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि मुक्तिबोध विश्व स्तरीय रचनाकार है।कविता को एक नया रूप प्रदान करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही है। संगोष्ठी के संयोजक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर मुनि राय ने विषय प्रवर्तन करते हुए मुक्तिबोध के साहित्य में युगबोध एवं उनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में प्रकाशित शोध सारांशो को शोधसारिका नाम से विमोचित किया गया। साथ ही पूर्ण शोधा पत्रों को समाहित करके प्ैठछ पुस्तक “मुक्तिबोध का साहित्यः युगबोध एवं प्रवृत्तियाँ” का भी विमोचन किया गया ।
संगोष्ठी के द्वितीय दिवस के मुख्य अतिथि डॉ. विनय कुमार पाठक ,पूर्व अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार यदु वरिष्ठ साहित्यकार ,बिलासपुर तथा विशिष्ट अतिथि डॉ राजन यादव ,खैरागढ़ थे। मुख्य अतिथि डॉ. विनय कुमार पाठक ने अपने उद्बोधन में कहा कि मुक्तिबोध का साहित्य तत्कालीन परिस्थिति यों से उपजा था ,भारत की स्वतंत्रता के बाद निर्मित परिस्थितियों से उनका मोह भंग हुआ जो उनकी रचनाओ में दिखता है।
डॉ. अरुण कुमार यदु ने अपने उद्बोधन में कहा कि मुक्तिबोध के साहित्य ने अंधकार से नवजीवन के संचार के भाव को प्रेषित किया ,उनकी रचनाएँ अनुभूति के आधार पार रची गई है। डॉ राजन यादव ने मुक्तिबोध की कविताओ का वाचन किया।
संगोष्ठी के दौरान अनेक शोध पत्रों का वाचन किया गया तथा उस पर अतिथियों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम में नगर के गणमान्य नागरिक एवं साहित्यकार श्री कुबेर साहू, डॉ डी सी जैन ,श्री आत्माराम कोशा, श्री गिरीश ठक्कर, श्री सरोज दिवेदी ,श्री अखिलेश त्रिपाठी ,श्री चंद्रशेखर शर्मा एवं अन्य उपस्थित रहे।
संगोष्ठी में अन्य महाविद्यालयों के प्रतिभागियों ,विद्यार्थियों,प्राध्यापको, रजिस्ट्रार श्री दीपक कुमार परगनिहा एवं शोधार्थियों ने बड़ी सख्या में सहभागिता दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ नीलम तिवारी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ शंकर मुनि राय ने किया।